Saturday, 6 February 2010

छा गयी शिवसेना! सही मायनों मे यह तो शिवसेना की बडी जीत है!

शुक्रवार को दिनभर जो टीवी पर देखने को मिला, वो बहुत ही दिलचस्‍प था और इससे तो यह भी साफ हो गया की हिंदी सहित सभी न्यूज वालों ने सिर्फ वही दिखाया, जो वो दिखाना चाहते हैं। खैर हिंदी न्यूज वालों की टीआरपी की अपनी अलग राजनीति है। लेकिन, शुक्रवार को कल जो टीवी पर दिनभर दिखाया, वो दिखाते-दिखाते उनको यह भी पता नहीं चला की असल मॆं वो मराठी माणूस और शिवसेना की जीत दिखा रहे हैं! कैसे? मैं ये खुल के बताता हूं...

मुद्दा 1: क्या कहा रा्हुल ने?

‘जब मुंबई में आतंकी हमले हुए, तो उस समय मुंबई को बचाने के लिए बिहार-यूपी के लोग आगे आए। उन्होंने आतंकियों से लोहा लिया।’ (बाद में उन्होंने अपने वक्तव्य में सुधार किया)

हम राहुल गांधी को देश के युवराज के तौर पर देखते हैं। वो ऎसा गैरजिम्मेदाराना विधान कैसे कर सकते हैं? क्या आपको इस विधान मॆं कोई राजनीति नजर नहीं आती? क्या हेमंत करकरे, आशोक कामटे, विजय सालसकर, तुकाराम ओंबले ये मराठी पुलिस अफसर उस वक्त शहीद नही हुए? क्या एन.एस.जी. मॆं मराठी नही हैं? क्या ये मराठियों का अपमान नहीं? राहुल गांधी ने बिहार मॆं अपनी राजनीति चमकाने के लिये मराठियों का अपमान किया, ये सच कोई नही नकार सकता।

मुद्दा 2: जब राहुल मुंबई आए... क्या कहा शिवसेना ने?

शिवसेना ने राहुल गांधी के कार्यक्रमों को होने न देने का या मुंबई बंद का, ऎसा कोई भी ऎलान बिलकुल भी नहीं किया था, बल्कि उन्होंने संवैधानिक मार्ग से राहुल गांधी को सिर्फ काले झंडे दिखाकर अपना विरोध प्रदर्शित करने का ऎलान किया था। लेकिन, हिंदी मीडिया ने अपनी टीआरपी की राजनीति चमकाने के लिए उस पर राहुल बनाम ठाकरे का रंग चढाया। 

मुद्दा 3: क्या दिखाना चाहती थी हिंदी मीडिया?

हिंदी मीडिया ने राहुल गांधी को बिना वजह सिर्फ अपने फायदे के लिये हिंदीभाषी लोगों के नायक के रुप मे पेश किया और शिवसेना को मराठी भाषी खलनायक के रुप में। इससे उन्हें टीआरपी का बहुत बडा फायदा मिलने वाला था।

मुद्दा 4: इतनी सुरक्षा क्यों?

अगर शिवसेना का कोई वजूद नही है, तो सुरक्षा के लिये 22,500 यानि महाराष्ट्र के आधे पुलिसकर्मी क्यों लगाये गये? क्यों एक रात पहले शिवसैनिकों को जेल मे डाला गया? राहुल गांधी ने क्यों ऎन वक्त पर अपना मार्ग बदला? बदुंकधारी सुरक्षाकर्मियों के घेरे मॆं लोकल से प्रवास करके राहुल गांधी ने मुंबई की सारी समस्याएं सुलझा दी? और, वैसे भी शिवसेना ने उनके कार्यक्रम मॆं अड़चन पैदा करने की बात नहीं की थी, बल्कि उन्हें संवैधानिक तरीके से सिर्फ काले झंडे दिखाने की बात की थी। इस पर हमें खासतौर पर गौर करना चाहिये।

यह सबसे महत्त्वपूर्ण मुद्दा है। कॄपया ध्यान से पढें

हिंदी मीडिया के मुताबिक, राहुल गांधी हिंदीभाषियों के नेता या हीरो के तौर पर सामने लाए गए। इसका मतलब असंख्य हिंदी भाषी लोगों का प्रतिनिधित्‍व राहुल गांधी कर रहे थे। अगर इसे कुछ देर के लिये सच भी माना जाये, तो...

जब असंख्य हिंदी भाषी लोग शिवसाना के काले झंडे उन्हीं हिंदी न्यूज चैनल के जरिये लाइव देख रहे थे, तब हिंदी मीडिया के मुताबिक उनका प्रतिनिधित्‍व कर रहे राहुल गांधी 22500 पुलिसकर्मियों के घेरे मॆं उन काले झंडों को देखें या न देखें, उससे क्या फर्क पडता है? हिंदी न्यूज मीडिया बहुत ही हास्यास्‍पद है, इसमें तो कोई शक नहीं।

मुझे मेरे भारत से बहुत प्यार है और मुझे तब तकलीफ होती है, जब हिंदी न्यूज मीडिया सिर्फ टीआरपी और पैसों के लिये सही मुद्दों को गलत तरीके से लोगों के सामने पेश करती है। असल में यह मेरा साफ मानना है कि मेरे महान भारत देश को तोड़ने का काम कोई राजनीतिक पार्टी नहीं, बल्कि यह हिंदी न्यूज मीडिया की राजनीति ही करती है।

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